Best Rajasthan Folk Arts In Hindi 2021

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Best Rajasthan Folk Arts In Hindi 2021 –

कलाएं मानव जीवन में अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम है। हर प्रकार की कला में जीवन का आनंद निरूपित होता है। सामान्य जन की कला ही लोककला कहलाती है। आज भी लोककलाएं विश्व भर में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं। राजस्थान की लोककलाएं भी संपूर्ण संसार में कला प्रेमियों के लिए अपनी एक खास जगह बनाए हुए हैं। यहां पर राजस्थान की प्रमुख लोककलाओं के बारे में बताया गया है, जो निम्न प्रकार है –

मांडणा लोककला –

शादी विवाह तथा मांगलिक अवसरों पर घर की महिलाओं द्वारा अपने घर-आंगन को लीपपोत कर खड़ी तथा गैरूं गैरों से अपनी उंगलियों की सहायता से आंगन में काफी अच्छे ज्यामितीय अलंकरण बनाए जाते हैं, जिन्हें हम राजस्थानी भाषा में मांडणे कहते हैं। इन मांडणों को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता हैं। जैसे – केरल में अत्तापु, बिहार में अहपन, बंगाल में अल्पना, गुजरात में सातियाँ, महाराष्ट्र में रंगोली तथा भोजपुरी में अंचल नाम से जाना जाता है।

राजस्थान में यह मांडणे विशेष अवसर की अभिव्यक्ति व्यक्त करवाते हैं। इन मांडणो में लोकमंगल की भावना भरी हुई होती है। राजस्थान में मुख्य रूप से सभी त्योहारों, पर्वों तथा उत्सव, जन्म-मरण और धार्मिक अनुष्ठानों पर चित्र किए जाते हैं।

कठपुतली लोककला –

इस लोक कला का जन्म स्थली राजस्थान को माना जाता है। इसके नाचने वाले भाट जाति के लोग होते हैं। मारवाड़ इन बातों का मुख्य स्थान होता है। वैसे कठपुतली बनाने का कार्य आमतौर पर चित्तौड़गढ़, कठपुतली नगर तथा उदयपुर में होता है। पुतली के क्षतिग्रस्त होने के बाद से फेंका नहीं जाता है बल्कि पानी में प्रवाहित किया जाता है।

कठपुतली वर्षाकाल में बंद रहता है, बल्कि सभी मौसम में चलता रहता है। कठपुतली नाटक में पुतली का सूत्रधार ही नाटक का मूल स्तंभ होता है, इसे स्थापक कहते हैं। वैसे भारत में मुख्य रूप से चार कोटपुतलीओं का ही प्रचलन होता है।
(1) छड़ पुतली
(2) दस्ताना पुतली
(3) धागा या सूत्र पुतली
(4) छाया पुतली

पड़ चित्रण लोककला –

इस कला के अंतर्गत रेजिया खादी के कपड़े पर लोक देवताओं की जीवन गाथा एवं पौराणिक कथाएं तथा ऐतिहासिक गाथाओं के चित्रित स्वरूप को ही पड़ कहा जाता है। पड़ें चित्र करने का काम जोशी गोत्र के छिपे करते हैं, जिन्हें चीतेरा कहा जाता है।

पड़ चित्र शैली में तथा लाल रंग का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। चित्रों में आकृति थोड़ी मोटी और गोल, बड़ी-बड़ी आंखें तथा अन्य शैलियों की अपेक्षा छोटी व मोटी होती है। राजस्थान में देवनारायण जी, रामदेव जी, बापूजी, गोगाजी, तेजाजी, डूँगजी-झुंवार जी आदि की पड़ें काफी प्रसिद्ध है। इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय पड़ बापूजी की है, लेकिन भगवान देवनारायण की सवारी पड़ सबसे लंबी होती है।

अब तक की सबसे छोटी 2×2 सैंटीमीटर देवनारायण जी की पड़ टिकट के रूप में देवनारायण जयंती यानी 2 सितंबर, 1992 को भारतीय डाक विभाग ने जारी की है।
देश की पहली पड़ चितेरी महिला श्रीमती पार्वती जोशी है।
इसके अलावा पड़ कला में गौतमी देवी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुकी है।

पड़ वाचन कला –

राजस्थान राज्य में पड़ वाचन कला की एक विशिष्ट परंपरा रही है। इस कला में पड़ में चित्रित कथा को भोपा द्वारा सुर ताल एवं लय के साथ गाया जाता है। इनमें भोपे के साथ भोपिन तथा उनके अन्य साथी भी होते हैं। अगर पड़ रात के समय बांची जाती है तो भोपिन पर हाथ में डंडे से लटकते दीपक को लिए पड़ के साथ गाथा बोल को दोहराते हुए नृत्य करती है। भोपे के अन्य साथी ढोलक, मजीरा, अलगोजा, जंतर, रावण्हत्ता आदि लोग वाद्य यंत्र जाते हैं।

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